
रक्षा बंधन हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार माना गया है यह श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह त्यौहार अपने नाम में ही सम्पूर्ण अर्थ समाया हुआ है, अगर रक्षा बंधन की संधि विच्छेद किया जाए तो वह (रक्षा+बंधन) बनता है जिसका अर्थ है रक्षा का बंधन जो भाई और बहिन के अटूट प्रेम को दर्शाता है। श्री कृष्ण ने गीता में कहा है की -‘मई सर्वमिदं प्रोतं सुत्रे मणिगणा इव’ अर्थात सूत्र मतलब धागा जो शुरू से ही अटूटता का प्रतीक रहा है , क्योकि सूत्र बिखरे हुए मोती को अपने अंदर पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा सूत्र (राखी) भी लोगों को जोड़ता है।
खेर हिन्दू उत्सवों की एक बात तो बड़ी ही दिलचस्प है कि हर त्यौहार का कुछ न कुछ सन्दर्भ वेद-पुराणों में मिल ही जाता है, और परम्परागत हम इन त्यौहार को बड़े ही उल्लास के साथ मानते और मनाते भी है। स्कंध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षा बंधन का प्रसंग मिलता है।
कथा –
दानवेन्द्र राजा बलि ने जब १०० यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इंद्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेश धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने ३ पग भूमि दान कर दी। भगवान ने २ ही पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्यौहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है। कहते है बालि रसातल में चले गए थे तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने पर नारद मुनि के बताए उपाय से लक्ष्मी जी ने बलि को रक्षा सूत्र बांध कर अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आई। इस तरह रक्षा बंधन का उत्सव बनने लगा।

यूँ तो रक्षा बंधन भाई बहन का त्यौहार होता है परन्तु अलग-अलग जगहों पर विभिन्न रूप से यह पर्व मनाया जाता है।
रक्षा बंधन के दिन सभी लोग दैनिक कार्यो के बाद मुहरत अनुसार पर्व के उत्साह में लीन हो जाते है, सबसे पहले पूजा की थाली सजाई जाती है जिसमे अक्षत, कुमकुम, राखियां एवं दीप प्रज्योलित किया जाता है। इसके बाद बहिन भाई के दाईं कलाई पर रेशम की डोरी से बनी राखी बांधती है और मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती है। राखी बंधवाने के बाद भाई प्रतिज्ञा लेता है स्वयं अपनी बहन की रक्षा करने का एवं उपहार स्वरुप धन देता है। बहनें भाई की लम्बी उम्र एवं सुख तथा उन्नति की कामना करती है।