छठ पूजा कथा एवं महत्व

October 24, 2019
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October 24, 2019

छठ पूजा एक बहुत ही प्राचीन त्यौहार है जिसको डाला छठ, डाला पुजा, सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है | इस दिन भगवान सूर्य की आराधना कर अपने परिवार के लिए सुख-शांति, सफलता, की कामना की जाती है। हिन्दू संस्कृति के अनुसार सूर्य की कामना एक रोग मुक्त, स्वास्थ्य जीवन की कामना होती है। इस साल छठ पूजा २ नवंबर को है ।

पुराने समय में राजा महाराज, पुरोहितों को खासकर इस पूजा को राज्य में करने के लिए आमंत्रित किया जाता था। सूर्य भगवान् की पूजा करने के लिए हवन कुंड के साथ-साथ वे ऋग्वेद के मन्त्रों का उच्चारण भी करते थे।

चैती छठ पूजा चार दिन का पर्व होता है, जो चैत्र शुक्ल चतुर्थी से आरंभ हो कर चैत्र शुक्ल सप्तमी तक चलता है। इस दौरान लगातार 36 घंटे का व्रत रखा जाता है। पहला दिन नहाय खाय होता है, इस दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती है।
दूसरे दिन खरना पूजा के साथ उपवास शुरू होता है। इस दिन व्रत करने के बाद शाम को सूर्यास्त के समय पूजा करने के बाद खीर का भोग लगा कर उसका प्रसाद ग्रहण किया जाता है। तीसरे दिन यानि षष्ठी को अस्त होते हुए सूर्य को दूध और जल से अर्घ्य अर्पण करते हैं। अंत में सप्तमी के दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दे कर चार दिन की ये पूजा सम्पन्न होती है।

कथा

राजा प्रियवद निःसंतान थे। तब संतान प्राप्ति हेतु महर्षि कश्यप नें यज्ञ करा कर राजा प्रियवद की धर्म पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए तैयार की गयी खीर दी। इस खीर के प्रभाव से उन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ। परंतु उनका पुत्र मृत पैदा हुआ था। इस दुखद घटना के शोक में लीन प्रियवद अपने मृत पुत्र को गोद में ले कर शमशान गए। और पुत्र वियोग में स्वयं के प्राण त्यागने की चेष्ठा करने लगे। उसी समय ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना वहां प्रकट हुई| उन्होंने राजा को बताया कि वे सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं | इसीलिए उनको षष्ठी कहा जाता है | उनकी पूजा करने से उन्हें संतान की प्राप्ति होगी | राजा और रानी ने बहुत ही नियम और निष्ठापूर्वक  छठी माता की पूजा की और उनको एक सुन्दर से  पुत्र की प्राप्ति हुई |

छठ पूजा के दिन छठी मैया यानि सूर्य देव की पत्नी की भी पूजा की जाती है। वेदों में छठी मैया को उषा के नाम से जाना जाता है। उषा का अर्थ होता है दिन की पहली रौशनी। उनकी पूजा छठ के दिन मोक्ष की प्राप्ति और मुश्किलों के हल करने की कामना करने के लिए की जाती है।

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